अधिक मास क्या होता है?
अधिक मास, जिसे 'अधिक मास' या 'पुरुषोत्तम मास' भी कहा जाता है, हिंदू कैलेंडर में एक विशेष मास है। यह मास हर दो या ढाई साल में आता है और सामान्यत: 30 या 32 महीनों में एक बार आता है। अधिक मास की उपस्थिति तब होती है जब चंद्रमा के अनुसार किसी वर्ष में 13वां मास होता है। इस प्रकार, अधिक मास एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना का परिणाम है, जो हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है।
अधिक मास की उत्पत्ति
हिंदू कैलेंडर में दो प्रमुख प्रकार के मास होते हैं: सौर मास और चंद्र मास। सौर मास सूर्य के आधार पर गणना की जाती है, जबकि चंद्र मास चंद्रमा के आधार पर। चंद्रमास के अनुसार, एक वर्ष में 12 चंद्रमास होते हैं, लेकिन कभी-कभी इन मासों की अवधि में असमानता के कारण एक अतिरिक्त मास की आवश्यकता होती है, जिसे अधिक मास कहा जाता है।
यह असमानता तब उत्पन्न होती है जब चंद्रमा के 12 चक्रों में से एक चक्र की अवधि, सौर वर्ष के दौरान अपनी स्थिति बदलने के कारण, पूरी नहीं होती। इस कारण, एक अतिरिक्त मास की आवश्यकता होती है, ताकि कैलेंडर में समन्वय स्थापित किया जा सके।
अधिक मास का महत्व
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
अधिक मास को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह में विशेष पूजा-अर्चना, व्रत, और तीर्थ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इसे धर्म और धार्मिक कृत्यों का पालन करने का एक शुभ समय माना जाता है।
पुरुषोत्तम मास
अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'श्रेष्ठ मास'। इसे भगवान विष्णु का मास माना जाता है, और इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा और विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। इस महीने में भक्त भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए अनेक व्रत और उपासना करते हैं।
इस माह में किए गए पुण्य कार्यों का विशेष महत्व होता है और इन्हें विशेष फलदायी माना जाता है। धार्मिक आस्था के अनुसार, इस महीने में किए गए साधना और पूजा के फल शाश्वत होते हैं।
पुण्यकाल
अधिक मास को पुण्यकाल माना जाता है, और इसे विशेष रूप से पवित्र कार्यों, दान और धार्मिक गतिविधियों के लिए अनुकूल समय माना जाता है। इस दौरान किए गए धार्मिक कर्मों और पुण्य कार्यों का विशेष महत्व होता है। यह समय आत्मिक शुद्धि, सुधार और तात्कालिक सुख-शांति के लिए उत्तम माना जाता है।
अधिक मास के दौरान किए जाने वाले प्रमुख कार्य
पूजा और व्रत
अधिक मास के दौरान विशेष पूजा और व्रत आयोजित किए जाते हैं। भक्त इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। इस समय में भक्तगण 'गर्भाग्नि' के अनुष्ठान भी करते हैं, जिसमें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष ध्यान और साधना की जाती है।
अधिक मास में विशेष रूप से 'विष्णु सहस्रनाम' का पाठ करने का महत्व होता है। भक्त इस दौरान अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे एकता और प्रेम का अनुभव होता है।
दान और परोपकार
इस महीने में दान और परोपकार का विशेष महत्व होता है। गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को दान देना इस समय का एक प्रमुख धार्मिक कृत्य होता है।
भक्तगण इस माह में अपनी सामर्थ्यानुसार दान करते हैं, चाहे वह धन, अनाज या अन्य सामग्री हो। दान की प्रक्रिया से व्यक्ति के मन में दयालुता और करुणा का भाव बढ़ता है।
तीर्थ यात्रा
अधिक मास के दौरान तीर्थ यात्रा का आयोजन भी बढ़ जाता है। भक्त विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा करके पवित्रता और आत्मिक शांति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
यह समय तीर्थ स्थलों की भीड़ भाड़ में भाग लेने का और पवित्र जल में स्नान करने का होता है। कई लोग इस दौरान हरिद्वार, काशी, प्रयाग, और अयोध्या जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं।
अधिक मास की विशेष तिथियाँ
अधिक मास के दौरान कुछ विशेष तिथियाँ और त्योहार भी मनाए जाते हैं:
अधिक शुक्ल पक्ष
इस दिन से अधिक मास की शुरुआत होती है और इसे 'अधिक शुक्ल पक्ष' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं।
अधिक चतुर्दशी
इस दिन विशेष पूजा और व्रत किए जाते हैं। भक्तगण इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
अधिक पूर्णिमा
इस दिन को अधिक मास की समाप्ति के रूप में मनाया जाता है और इसे विशेष धार्मिक गतिविधियों के लिए अनुकूल माना जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
अधिक मास के विशेष धार्मिक अनुष्ठान
अधिक मास के दौरान विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जो भक्तों की आस्था को प्रगाढ़ करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
1. रुद्राभिषेक
अधिक मास के दौरान रुद्राभिषेक का विशेष महत्व है। भक्तगण इस अनुष्ठान के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न करते हैं और अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
2. महामृत्युंजय जाप
महामृत्युंजय जाप भी इस महीने में किया जाता है। यह जाप स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस अनुष्ठान के द्वारा भक्त अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करते हैं।
3. संतान प्राप्ति के लिए अनुष्ठान
जो दांपत्य जीवन में संतान की इच्छा रखते हैं, वे इस मास में विशेष अनुष्ठान करते हैं। यह अनुष्ठान भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
4. जल दान
अधिक मास में जल दान का विशेष महत्व होता है। यह माना जाता है कि इस महीने में जल दान करने से व्यक्ति के पाप कटते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
अधिक मास के दौरान धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन
अधिक मास के दौरान धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना भी एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। भक्तगण इस समय 'भागवत गीता', 'रामायण', और 'महाभारत' जैसे ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। इस अध्ययन से उन्हें धार्मिक ज्ञान प्राप्त होता है और आत्मा की शुद्धि होती है।
निष्कर्ष
अधिक मास हिंदू कैलेंडर का एक विशेष मास है, जो धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है। यह मास विशेष पूजा-अर्चना, दान, तीर्थ यात्रा और धार्मिक कृत्यों के लिए उपयुक्त समय माना जाता है। इसे 'पुरुषोत्तम मास' के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह भक्तों को धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने का एक अवसर प्रदान करता है।
अधिक मास का महत्व न केवल धार्मिक आस्था में है, बल्कि यह सामाजिक एकता, दान-पुण्य और मानवता के कल्याण का भी प्रतीक है। इस दौरान किए गए कार्य न केवल व्यक्ति के जीवन में बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं। यही कारण है कि अधिक मास को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है और इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
इस प्रकार, अधिक मास हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाता है। यह मास हमें एक नई दिशा देता है, जिसमें हम अपने जीवन को सुधारने, समाज की सेवा करने और भगवान के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने का अवसर प्राप्त करते हैं।
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