क्यू हर महिने पौर्णिमा और अमावस्या आती है? कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष क्या होता है? जानिए रहस्य....


पौर्णिमा, अमावस्या, कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष

पौर्णिमा और अमावस्या भारतीय पंचांग के महत्वपूर्ण तिथियाँ हैं, और ये हर महीने आती हैं क्योंकि चंद्रमा की गति और उसका चक्र इन तिथियों को निर्धारित करता है।

पौर्णिमा, अमावस्या, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की कहानियाँ और उनके धार्मिक महत्व भारतीय पौराणिक कथाओं और संस्कृतियों में गहराई से जुड़े हुए हैं। आइए इन सभी का विस्तृत वर्णन जानते हैं:


पौर्णिमा (Full Moon Day)

पौर्णिमा, अमावस्या कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष

वर्णन:

  • यह तिथि चंद्रमा के पूर्ण रूप में दिखने के दिन होती है। इसका मतलब है कि चंद्रमा और सूर्य के बीच पूरा अंतराल होता है, जिससे चंद्रमा पूरी तरह से रोशन होता है। यह हर महीने की पूर्णिमा तिथि पर आती है, जब चंद्रमा अपनी पूर्णता पर होता है। इसका मतलब है कि चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी की स्थिति ऐसी होती है कि चंद्रमा का पूरा हिस्सा हमें दिखाई देता है। यहाँ इसके महत्व और विवरण की चर्चा की गई है:

लूनर चक्र और खगोलशास्त्र:

  • चंद्रमास लगभग 29.5 दिनों का होता है और पूर्णिमा इस चक्र के मध्य में आती है।
  • पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूरी तरह से उज्ज्वल होता है, क्योंकि सूर्य की किरणें चंद्रमा के पूरी सतह को रोशन करती हैं।

महत्व:

  • कार्तिक पूर्णिमा: इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान और दीप दान की परंपरा है। यह दिन गंगा, यमुनाजी, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने और दीप जलाने का महत्वपूर्ण अवसर है। इसे दीपावली के बाद आने वाली पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
  • बुद्ध पूर्णिमा: यह दिन भगवान बुद्ध की जयंती, निर्वाण, और उनके ज्ञान प्राप्ति की स्मृति में मनाया जाता है। इसे वैशाख पूर्णिमा भी कहते हैं।
  • श्रावण पूर्णिमा: इसे राखी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुरक्षा के लिए राखी बांधती हैं। यह भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती का प्रतीक है।

धार्मिक कहानियाँ:

  • भगवान श्रीकृष्ण का जन्म: पौर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। कंस के अत्याचारों से मानवता को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया। यह दिन जन्माष्टमी के रूप में बड़े श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है।
  • धर्मराज युधिष्ठिर की दानशीलता: महाभारत के अनुसार, धर्मराज युधिष्ठिर पौर्णिमा के दिन बड़े दान करते थे। उन्हें विश्वास था कि पौर्णिमा की रात चाँद की ऊर्जा से दान का महत्व और बढ़ जाता है।
  • कार्तिक पूर्णिमा: इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। यह पर्व दीपावली के समय दीपों के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

अमावस्या (New Moon Day)

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वर्णन:

  • यह तिथि चंद्रमा के पूरी तरह से छुपे होने के दिन होती है। इसका मतलब है कि चंद्रमा और सूर्य एक ही रेखा में होते हैं और चंद्रमा सूर्य के पीछे छिपा होता है, जिससे वह पूरी तरह से अंधेरे में रहता है। अमावस्या भी हर महीने आती है, और यह चंद्रमा के नई स्थिति में होने पर आधारित होती है। इसका मतलब है कि चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच होता है, जिससे उसकी पूरी सतह दिखाई नहीं देती है। यहाँ इसके महत्व और विवरण की चर्चा की गई है:

लूनर चक्र और खगोलशास्त्र:

  • अमावस्या चंद्रमास के अंत की स्थिति होती है, जब चंद्रमा पूरी तरह से छिपा हुआ होता है।
  • यह दिन चंद्रमा के नई स्थिति में होने का प्रतीक है और अगले चंद्रमास की शुरुआत को दर्शाता है।

महत्व:

  • सोमवती अमावस्या: इस दिन विशेष रूप से पति-पत्नी के रिश्तों को मजबूत करने और पितरों की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विशेष व्रत और पूजा की जाती है।
  • शनि अमावस्या: इस दिन शनि देव की पूजा विशेष महत्व रखती है। शनि के प्रभावों से बचने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत और पूजा की जाती है।
  • दीपावली: अमावस्या की रात दीपावली का पर्व मनाया जाता है। यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। भगवान रामचन्द्रजी के 14 वर्षों के वनवास समाप्ति के दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

धार्मिक कहानियाँ:

  • पितरों की पूजा: अमावस्या के दिन पितरों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन पितर अपने परिजनों के पास आते हैं। पितर तर्पण और श्राद्ध करने से उनके आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। इसे पितृ पक्ष भी कहते हैं।
  • दीपावली: अमावस्या की रात अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पर्व दीपावली मनाया जाता है। यह भगवान रामचन्द्रजी की अयोध्या लौटने की खुशी में दीप जलाने का प्रतीक है।
  • शनि अमावस्या: इस दिन शनि देव की पूजा की जाती है, जो शनि के अशुभ प्रभावों को दूर करने का दिन माना जाता है।

पौर्णिमा और अमावस्या का चक्र

  • चंद्रमा का मासिक चक्र दो चरणों में बाँटा जाता है: वृद्धि (जब चंद्रमा नया चाँद से पूर्ण चाँद की ओर बढ़ता है) और क्षीण (जब चंद्रमा पूर्ण चाँद से नया चाँद की ओर घटता है)। पौर्णिमा वृद्धिशील चरण का शिखर होती है, जबकि अमावस्या क्षीणशील चरण का अंत होती है।

  • हर माह में एक बार पौर्णिमा और एक बार अमावस्या आती है, जो नियमित चंद्रमास चक्र के आधार पर होती है। इन तिथियों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व बहुत बड़ा होता है और ये भारतीय पंचांग में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।

कृष्ण पक्ष (Waning Moon Phase)

वर्णन: कृष्ण पक्ष तब शुरू होता है जब चाँद की चमक कम होने लगती है और यह अमावस्या तक चलता है।

महत्व:

  • धार्मिक गतिविधियाँ: इस अवधि में उपवास और विशेष पूजा की जाती है। इसे साधना और ध्यान के लिए अनुकूल माना जाता है।
  • व्रत: कई हिन्दू व्रत और उपवास कृष्ण पक्ष के दौरान होते हैं, जैसे कि व्रत या पूर्णिमा व्रत

धार्मिक कहानियाँ:

  1. उपवास और साधना: कृष्ण पक्ष के दौरान विशेष रूप से उपवास और साधना की परंपरा है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि इस अवधि में साधना करने से मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति होती है।

  2. मासिक शिवरात्रि: कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। यह भगवान शिव की पूजा का विशेष दिन होता है, जब भक्त उपवास रखते हैं और रात्रि भर जागरण करते हैं।

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शुक्ल पक्ष (Waxing Moon Phase)

वर्णन: शुक्ल पक्ष तब शुरू होता है जब चाँद की चमक बढ़नी शुरू होती है और यह पूर्णिमा तक चलता है।

महत्व:

  • धार्मिक गतिविधियाँ: इस अवधि में पूजा और धार्मिक कार्यों की उच्च प्राथमिकता होती है। यह शुभ कार्यों, जैसे कि विवाह और नए उद्यमों की शुरुआत के लिए आदर्श समय माना जाता है।
  • व्रत: शुक्ल पक्ष के दिनों में विशेष पूजा और व्रत होते हैं, जैसे कि नवरात्रि का प्रारंभ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है।

धार्मिक कहानियाँ:

  1. नवरात्रि: शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवरात्रि का पर्व प्रारंभ होता है। यह देवी दुर्गा की आराधना का विशेष समय होता है और नौ रातों तक चलने वाला यह पर्व शक्ति और विजय का प्रतीक है।

  2. ग्रहण और शुभ मुहूर्त: शुक्ल पक्ष के दिनों को शुभ कार्यों, जैसे कि विवाह, गृह प्रवेश, और नए उद्यमों की शुरुआत के लिए आदर्श समय माना जाता है। मान्यता है कि इस समय चाँद की सकारात्मक ऊर्जा शुभ अवसरों को सफल बनाती है।

इन तिथियों और पक्षों के धार्मिक महत्व और उनके पीछे की कहानियाँ भारतीय संस्कृति और परंपराओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनका पालन करने से व्यक्ति न केवल धार्मिक कर्तव्यों को निभाता है, बल्कि जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति की दिशा में भी कदम बढ़ाता है।

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