सिद्धियां जिसमे ऋषी मुनी महारत हासील करते थे कैसे प्राप्त होती हैं ये सिद्धियां? कोनसी अष्ट सिद्धियां जो हनुमानजी को थी प्राप्त?

 

सिद्धि क्या है?
सिद्धि (Siddhi) एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "पूर्णता" या "अधिकार प्राप्ति"। यह आध्यात्मिक, मानसिक, और भौतिक स्तर पर किसी उच्च क्षमता, शक्ति या विशेष ज्ञान को प्राप्त करने की अवस्था है। प्राचीन हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, और जैन धर्म में सिद्धि का विशेष स्थान है और यह एक साधक द्वारा साधना, तपस्या और योग के माध्यम से प्राप्त की जाती है।

सिद्धियों का संबंध व्यक्ति के मानसिक और आत्मिक विकास से है। जब एक व्यक्ति अपने मानसिक और शारीरिक नियंत्रण में उत्कृष्टता प्राप्त करता है और ब्रह्मा या सर्वोच्च शक्ति से जुड़ने की क्षमता हासिल करता है, तो वह सिद्धियों को प्राप्त करता है। इन सिद्धियों में शक्तियाँ होती हैं जो सामान्य मानव क्षमताओं से बाहर होती हैं, जैसे कि अदृश्य होना, दूसरों के विचार पढ़ना, या किसी अन्य समय और स्थान पर यात्रा करना।

सिद्धि के प्रकार

सिद्धियों के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो योग, तपस्या और साधना के विभिन्न मार्गों से प्राप्त किए जा सकते हैं। इन सिद्धियों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

1. अष्ट सिद्धियाँ (Eight Siddhis):

यह सिद्धियाँ मुख्य रूप से हठयोग और राजयोग के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त होती हैं। यह सिद्धियाँ योग की उच्चतम स्थिति की ओर इशारा करती हैं और इनका उल्लेख प्राचीन योग ग्रंथों में किया गया है। 

हनुमान जी ने आठ प्रमुख सिद्धियाँ प्राप्त की थीं, जिन्हें "अष्ट सिद्धियाँ" कहा जाता है। हनुमान जी ने इन सिद्धियों को भगवान शिव से प्राप्त किया था, और इनका वर्णन विशेष रूप से रामायण में मिलता है। यह सिद्धियाँ हनुमान जी को अद्वितीय शक्ति और अद्भुत क्षमता प्रदान करती थीं। हनुमान जी की ये आठ सिद्धियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. अणिमा (Anima): हनुमान जी को यह शक्ति प्राप्त थी कि वे किसी भी वस्तु या व्यक्ति को सूक्ष्म रूप में बदल सकते थे। इसे "सूक्ष्मता की सिद्धि" भी कहा जाता है। इसी सिद्धि के कारण, हनुमान जी ने रावण के महल में बिना किसी को बताए प्रवेश किया और सीता माता से मिले।

  2. महिमा (Mahima): हनुमान जी को महिमा की सिद्धि प्राप्त थी, जिससे वे अपनी आकृति को अत्यधिक विस्तारित कर सकते थे। इस सिद्धि का उदाहरण रामायण में उस समय देखने को मिलता है जब हनुमान जी ने अपनी कद को विशाल करके समुद्र को पार किया।

  3. लघिमा (Lagima): हनुमान जी को लघिमा की सिद्धि प्राप्त थी, जिससे वे अपनी शारीरिक वजन को अत्यधिक कम कर सकते थे। इसे "हल्केपन की सिद्धि" कहा जाता है। इस सिद्धि के कारण, हनुमान जी ने लंका के महल में अपनी कद को छोटा कर लिया और रावण के दरबार में आसानी से घुस गए।

  4. गर्भिमा (Garbhima): यह सिद्धि हनुमान जी को प्राप्त थी जिससे वे किसी भी स्थान पर अदृश्य हो सकते थे। इसी सिद्धि का उपयोग उन्होंने सीता माता से मिलने के बाद लंका के नगर में किया, जब उन्होंने राक्षसों से बचने के लिए खुद को अदृश्य कर लिया।

  5. ईशिता (Ishita): हनुमान जी के पास ईशिता की सिद्धि भी थी, जिसके माध्यम से वे किसी भी वस्तु या व्यक्ति पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर सकते थे। यह सिद्धि उन्हें महान योद्धा और भगवान शिव के उपासक के रूप में स्थापित करती है।

  6. वशिता (Vashita): हनुमान जी के पास वशिता की सिद्धि थी, जिससे वे किसी भी व्यक्ति, प्राणी या शक्ति को नियंत्रित कर सकते थे। इसका उपयोग उन्होंने रावण की सेना को नष्ट करने में किया था।

  7. प्राकाम्या (Prakamya): हनुमान जी को यह सिद्धि प्राप्त थी, जिसके माध्यम से वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी कार्य को पूरा कर सकते थे। इस सिद्धि का उपयोग उन्होंने भगवान राम के कार्यों को सिद्ध करने में किया।

  8. कर्मसिद्धि (Karmasiddhi): हनुमान जी को कर्मसिद्धि की सिद्धि प्राप्त थी, जिससे वे किसी भी कर्म को सिद्ध करने में सक्षम थे। यह सिद्धि उन्हें भगवान राम के भक्त और उनके कार्यों में सहयोग देने के लिए सक्षम बनाती थी।


2. विभिन्न अन्य सिद्धियाँ:

इनके अतिरिक्त भी कई अन्य प्रकार की सिद्धियाँ हैं जिन्हें साधक अपने तपस्या और साधना के द्वारा प्राप्त करते हैं। इनमें प्रमुख सिद्धियाँ निम्नलिखित हैं:

1. अनूर्मिमत्वम् (Anurmimattva)

यह सिद्धि किसी वस्तु या व्यक्ति को सूक्ष्म रूप में बदलने की क्षमता को दर्शाती है। साधक इस सिद्धि के माध्यम से किसी भी वस्तु को इतनी सूक्ष्मता से देख सकता है, कि वह आमतौर पर दिखाई न दे। इस सिद्धि से साधक अपने शरीर को भी सूक्ष्म बना सकता है और किसी भी स्थान पर प्रवेश कर सकता है, जहां सामान्य व्यक्ति का पहुंचना संभव नहीं है।

2. दूरश्रवण (Dura-shravan)

यह सिद्धि किसी व्यक्ति को दूर से हो रही आवाज़ों को सुनने की क्षमता प्रदान करती है। यह एक प्रकार की "क्लैरऑडियन्स" (Clairaudience) होती है, जो यह क्षमता देती है कि साधक किसी भी स्थान पर हो, वह दूर से हो रही वार्ता, घटनाओं, या आवाज़ों को सुन सकता है। यह सिद्धि मानसिक और आध्यात्मिक जागृति की स्थिति में प्राप्त होती है।

3. दूरदर्शन (Dura-darshan)

यह सिद्धि किसी व्यक्ति को दूरस्थ स्थानों पर हो रही घटनाओं को देख सकने की क्षमता प्रदान करती है। साधक के पास यह शक्ति होती है कि वह अपनी आँखों से दूर-दूर तक घटनाओं को देख सकता है, जो भौतिक रूप से उसके आसपास नहीं हो रही होतीं। यह एक प्रकार का "क्लैरवॉयंस" (Clairvoyance) है, जो साधक को समय और स्थान की सीमाओं से मुक्त करता है।

4. मनोजवः (Manojavah)

यह सिद्धि साधक को अपनी मानसिक शक्ति और इच्छाशक्ति द्वारा अत्यधिक गति प्राप्त करने की क्षमता देती है। "मनोजवः" का अर्थ होता है "मन के द्वारा तेज़ गति प्राप्त करना"। साधक इस सिद्धि के माध्यम से अपने शरीर और मन को इतनी तेज़ गति से चला सकता है कि वह किसी भी स्थान पर तुरंत पहुँच सकता है। इसे मन की गति और शारीरिक गति का एक साथ संतुलन माना जा सकता है।

5. कामरूपम् (Kama-roopam)

यह सिद्धि साधक को किसी भी रूप में बदलने की शक्ति देती है। "कामरूप" का अर्थ है "इच्छा के अनुसार रूप परिवर्तन करना"। साधक अपनी इच्छाओं के अनुसार किसी भी रूप में बदल सकता है, जैसे कि किसी और व्यक्ति, प्राणी या वस्तु के रूप में आ सकता है। यह सिद्धि रूपांतरण या आकार बदलने की शक्ति का प्रतीक है, जो किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना करने में सहायक होती है।

6. परकायाप्रवेशनम् (Parakaya-praveshanam)

यह सिद्धि किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने की क्षमता देती है। "परकायाप्रवेशनम्" का अर्थ है "दूसरे के शरीर में प्रवेश करना"। साधक इस सिद्धि के माध्यम से किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में अपनी आत्मा का प्रवेश कर सकता है और उसकी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकता है। यह सिद्धि मानसिक नियंत्रण और आत्म-जागरूकता का अत्यधिक उन्नत रूप है।

7. स्वच्छन्द मृत्यु (Swachhanda Mrityu)

यह सिद्धि साधक को मृत्यु के समय को नियंत्रित करने की क्षमता देती है। साधक के पास यह शक्ति होती है कि वह अपनी मृत्यु को इच्छानुसार टाल सकता है या उसे नियंत्रित कर सकता है। यह सिद्धि मृत्यु से परे जीवन की शक्ति को दर्शाती है और साधक को उसके जीवन और मृत्यु के निर्णय में पूर्ण स्वतंत्रता देती है।

8. देवानां सह क्रीडा अनुदर्शनम् (Devanam saha Kreeda Anudarshanam)

यह सिद्धि साधक को देवताओं के साथ खेल-कूद और संवाद करने की क्षमता देती है। साधक इस सिद्धि के माध्यम से देवताओं के साथ संपर्क स्थापित कर सकता है, उनके साथ खेल सकता है और उनकी दिव्य गतिविधियों को देख सकता है। यह सिद्धि दिव्य संसार से जुड़ने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का एक माध्यम है।

9. यथासंकल्पसंसिद्धिः (Yathasankalpa-siddhi)

यह सिद्धि साधक को अपनी इच्छाओं को तुरंत पूरा करने की शक्ति देती है। "यथासंकल्पसंसिद्धि" का अर्थ है "इच्छा के अनुसार सिद्धि प्राप्त होना"। साधक इस सिद्धि के माध्यम से अपनी इच्छाओं, संकल्पों और लक्ष्यों को जल्दी और प्रभावी रूप से प्राप्त कर सकता है। यह सिद्धि मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक है।

10. आज्ञा अप्रतिहता गतिः (Ajnaya Apratihata Gati)

यह सिद्धि साधक को बिना किसी रोक-टोक के अपनी गति और दिशा निर्धारित करने की शक्ति देती है। "आज्ञा अप्रतिहता गतिः" का अर्थ है "निर्बाध गति"। साधक इस सिद्धि के माध्यम से किसी भी स्थान पर बिना किसी रुकावट के पहुँच सकता है। यह सिद्धि समय और स्थान की सीमाओं को पार करने की क्षमता का प्रतीक है।

सिद्धि कैसे प्राप्त होती है?

सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति को कठोर साधना, तपस्या, और मानसिक शांति की आवश्यकता होती है। ये सिद्धियाँ सामान्यत: किसी भी व्यक्ति के लिए सहज रूप से उपलब्ध नहीं होतीं, क्योंकि इन्हें प्राप्त करने के लिए विशेष प्रकार की साधना और आध्यात्मिक उन्नति की आवश्यकता होती है। सिद्धि प्राप्त करने के प्रमुख मार्ग इस प्रकार हैं:

1. योग साधना:

योग साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर पूर्णता प्राप्त करता है। योग के माध्यम से शरीर के ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को सक्रिय किया जाता है, जिससे आत्मा और शरीर के बीच संतुलन स्थापित होता है। योग की प्रमुख विधियाँ जैसे हठयोग, राजयोग, मंत्रयोग, और तंत्रयोग व्यक्ति को सिद्धियों की ओर मार्गदर्शन करती हैं।

2. तपस्या:

तपस्या का अर्थ है शारीरिक और मानसिक स्तर पर कठिन साधना करना, जो सामान्य जीवन से हटकर हो। इसमें व्यक्ति कठिन अनुशासन और संयम का पालन करता है। तपस्या से मानसिक शांति और शारीरिक ऊर्जा को संचित किया जाता है, जिससे सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं।

3. मंत्र साधना:

मंत्रों का जाप भी सिद्धियाँ प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है। मंत्रों के उच्चारण से मानसिक शांति और ध्यान की स्थिति उत्पन्न होती है, जो साधक को शक्तिशाली बनाती है। मंत्रों के माध्यम से व्यक्ति ब्रह्मा शक्ति से जुड़ता है और अपनी आत्म-शक्ति को जागृत करता है।

4. ध्यान और साधना:

सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए ध्यान एक महत्वपूर्ण साधना है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने मन और शरीर को नियंत्रित करता है। जैसे ही व्यक्ति अपने भीतर की शक्तियों को जागृत करता है, वह सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए तैयार होता है।

5. आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन में साधना:

बहुत से लोग सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए किसी गुरु के पास जाते हैं। गुरु का मार्गदर्शन, उनकी शिक्षा और आशीर्वाद से व्यक्ति अपने आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ता है और सिद्धियाँ प्राप्त करने में सक्षम होता है।

सिद्धि के फायदे

सिद्धियाँ प्राप्त करने के कई फायदे हो सकते हैं, जो व्यक्ति के जीवन को बेहतर बना सकते हैं। कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

1. आध्यात्मिक उन्नति:

सिद्धियाँ व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करती हैं। इन सिद्धियों के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर की शक्ति को महसूस करता है और अपने आत्मज्ञान की ओर कदम बढ़ाता है।

2. शरीरिक शक्ति और स्वास्थ्य:

सिद्धियाँ शारीरिक स्वास्थ्य को भी सुधार सकती हैं। विभिन्न योग साधनाओं और ध्यान के माध्यम से शरीर को मजबूत और स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है।

3. मानसिक शांति:

सिद्धियों के माध्यम से व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह मानसिक तनाव, चिंता, और अवसाद को दूर करने में सहायक होता है।

4. सामाजिक प्रतिष्ठा:

कुछ सिद्धियाँ व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान दिला सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति सिद्धियों को अच्छे उद्देश्य के लिए प्रयोग करता है, तो समाज में उसकी मान्यता बढ़ सकती है।

5. दूसरों की मदद करना:

सिद्धियाँ व्यक्ति को दूसरों की मदद करने की क्षमता प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, व्यक्ति बीमारियों का इलाज कर सकता है, दूसरों के दुखों को दूर कर सकता है, या किसी को मानसिक शांति दे सकता है।

सिद्धि के नुकसान

हालाँकि सिद्धियाँ लाभकारी हो सकती हैं, लेकिन इनके कुछ संभावित नुकसानों पर भी विचार करना आवश्यक है। निम्नलिखित कुछ नुकसानों को ध्यान में रखा जाना चाहिए:

1. अहंकार का आना:

कभी-कभी सिद्धियाँ व्यक्ति के अहंकार को बढ़ा सकती हैं। व्यक्ति यह महसूस कर सकता है कि वह दूसरों से superior है, जिससे अहंकार और घमंड पैदा हो सकता है। इस प्रकार का मानसिक रूपांतर आत्म-विनाशकारी हो सकता है।

2. सिद्धियों का गलत प्रयोग:

यदि व्यक्ति सिद्धियों का गलत उद्देश्य के लिए उपयोग करता है, तो इससे न केवल उसका जीवन बल्कि समाज पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। जैसे, किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इन शक्तियों का उपयोग करना गलत है।

3. भटकाव का कारण बनना:

सिद्धियाँ प्राप्त करने की प्रक्रिया में व्यक्ति कभी-कभी भटक सकता है। वह बाहरी दुनिया से दूर हो सकता है और उसे वास्तविक जीवन से संबंध टूटने का खतरा हो सकता है।

4. शरीरिक और मानसिक थकान:

लंबे समय तक साधना और तपस्या करने से शारीरिक और मानसिक थकान हो सकती है। इसलिए, सिद्धियाँ प्राप्त करने के दौरान संतुलन बनाए रखना जरूरी है।

निष्कर्ष

सिद्धि एक उच्चतम अवस्था है, जिसे एक व्यक्ति अपनी साधना, तपस्या, योग और मानसिक शांति के माध्यम से प्राप्त कर सकता है। सिद्धियाँ व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शक्ति प्रदान करती हैं, लेकिन इनका सही उपयोग करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सिद्धियाँ केवल साधक की आत्मा के विकास के लिए होनी चाहिए, न कि अहंकार या व्यक्तिगत लाभ के लिए।

यदि सिद्धियों का सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो वे न केवल व्यक्ति के जीवन को बेहतर बना सकती हैं, बल्कि समाज और मानवता के लिए भी लाभकारी हो सकती हैं। सिद्धियाँ जीवन के गहरे रहस्यों को समझने और जीवन के उच्च उद्देश्य को प्राप्त करने का एक मार्ग हो सकती हैं, बशर्ते इसे सही दिशा में प्रयोग किया जाए।

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