भगवान ने हर युग मे अवतार लिया, पर कलयुग मे अभि तक क्यू नही लिया?


भगवान ने हर युग में अवतार लिया, यह विश्वास हिन्दू धर्म में गहरे रूप से समाहित है। प्रत्येक युग (यथा सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, और कलियुग) में उन्होंने मानवता की भलाई के लिए अपनी शक्ति का अवतार लिया। हालांकि, कलियुग में भगवान के अवतार लेने की आवश्यकता और संभावना पर विचार करना एक दिलचस्प और गहन विषय है। इस विषय को समझने के लिए, हमें पहले ये जानना होगा कि अवतार का क्या अर्थ है, भगवान ने पहले के युगों में अवतार क्यों लिए, और कलियुग में उनका अवतार क्यों नहीं माना जाता।

1. अवतार का अर्थ और महत्व

अवतार शब्द का अर्थ है ‘अव-तारण’, जिसका अर्थ है ‘नीचे आना’। जब भगवान या दिव्यता किसी विशेष उद्देश्य के लिए पृथ्वी पर आते हैं, तो उसे अवतार कहा जाता है। हिन्दू धर्म में, विशेष रूप से विष्णु भगवान के दशावतार (दस अवतार) का उल्लेख है, जिसमें उन्होंने समय-समय पर पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में जन्म लिया। ये अवतार इस बात के प्रतीक हैं कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, भगवान पृथ्वी पर आकर धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं।

2. प्रत्येक युग में भगवान के अवतार की आवश्यकता क्यों थी?

  • सत्ययुग (या सतयुग): यह युग सत्य और धर्म का युग था। इस युग में लोग धर्म, सत्य, और नैतिकता के मार्ग पर चलने में सक्षम थे। भगवान ने इस युग में मुख्य रूप से प्राकृत रूप में ही अपनी उपस्थिति बनाए रखी।
  • त्रेतायुग: इस युग में भी धर्म और सत्य की अधिकता थी, लेकिन अधर्म का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा। इस युग में भगवान ने पहले अवतार के रूप में रामचन्द्र का रूप लिया। उन्होंने रावण जैसे राक्षसों का संहार किया और धर्म की रक्षा की।
  • द्वापर युग: यह युग अधिक कठिन था, जिसमें अधर्म की वृद्धि और विवादों का प्रारंभ हुआ। इस युग में भगवान ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। उन्होंने महाभारत के युद्ध के माध्यम से धर्म की स्थापना की और अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।

3. कलियुग का स्वरूप और विशेषताएं

कलियुग, जिसे हम वर्तमान युग मानते हैं, सबसे कठिन युग है। इसमें अधर्म, असत्य, असमानता, और विकारों की अधिकता है। इस युग में मानवता के गिरते हुए स्तर, समाज की समस्याओं, और आध्यात्मिक पतन की स्थिति को देखते हुए, कुछ लोग सोचते हैं कि भगवान का अवतार क्यों नहीं हो रहा है।

कलियुग की विशेषताएं:

  • इस युग में मानव का मन और शरीर कमजोर हो जाता है।
  • लोगों में स्वार्थ, झूठ, और अंधविश्वास की प्रवृत्तियां बढ़ जाती हैं।
  • आध्यात्मिकता और धार्मिकता की कमी हो जाती है।
  • समाज में असमानता, अपराध, और हिंसा की घटनाएं आम होती हैं।

4. कलियुग में भगवान के अवतार की अवधारणा

शास्त्रों और पुरानी कथाओं के अनुसार, कलियुग में भगवान का अवतार लेने की आवश्यकता का प्रश्न बार-बार उठता है। कई ग्रंथों में कहा गया है कि इस युग में भगवान का अवतार इस प्रकार से होगा, जिससे उनके आने का स्वरूप और उद्देश्य भिन्न हो सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा था, "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभूत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।" इसका अर्थ है, “जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूं।"

हालांकि, कलियुग के अंत में भगवान का अवतार निश्चित रूप से होगा, परंतु उसकी प्रकृति और समय पर कई मत हैं। एक दृष्टिकोण यह है कि भगवान इस युग में अपनी उपस्थिति को अत्यंत आध्यात्मिक और सूक्ष्म रूप में प्रकट करेंगे, जबकि दूसरा मानता है कि वह पृथ्वी पर आकर मानवता का उद्धार करेंगे।

5. भविष्यवाणियाँ और शास्त्रों की व्याख्या

भविष्यवाणियों और हिन्दू धर्म ग्रंथों में कलियुग के अंत और भगवान के अगले अवतार के विषय में विभिन्न विवरण दिए गए हैं:

  • भागवत पुराण में कहा गया है कि कलियुग का अंत महाप्रलय के साथ होगा, जिसमें पृथ्वी पर समस्त जीवों की मृत्यु होगी। इस समय भगवान के अवतार के रूप में "कल्कि" का आगमन होगा।
  • कृष्ण पुराण और अन्य ग्रंथों में कहा गया है कि कलियुग में भगवान के अवतार के रूप में उनके एक नए रूप, जैसे कि "कल्कि" की उपस्थिति होगी, जो एक श्वेत घोड़े पर सवार होंगे और वे अधर्म का संहार करेंगे।

6. भगवान के अवतार के लिए क्यों जरूरी है समय?

भगवान के अवतार लेने का उद्देश्य हर युग में समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता है। जब समाज में अधर्म, अन्याय, और बुराई का सम्राज्य होता है, तो भगवान एक अदृश्य शक्ति के रूप में प्रकट होते हैं और धर्म की स्थापना के लिए कार्य करते हैं। कलियुग की स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि भगवान अपनी उपस्थिति से समाज को पुनः सही दिशा की ओर ले जाएं।

7. वर्तमान युग में भगवान की उपस्थिति कैसे होती है?

कलियुग में भगवान की उपस्थिति को लेकर यह मान्यता है कि वह अपने भक्तों के हृदय में निवास करते हैं। वे अपने भक्ति रूप में और उनके नाम की महिमा में वास करते हैं। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा था कि मैं भक्तों के हृदय में निवास करता हूं और जब वे मुझे अपने हृदय से पुकारते हैं, तो मैं उनके भीतर उपस्थिति रहता हूं।

निष्कर्ष

कलियुग में भगवान के अवतार की अवधारणा एक रहस्य है, जिसका उत्तर आने वाले समय में ही स्पष्ट हो पाएगा। हिन्दू धर्म यह मानता है कि जब समय आएगा, भगवान की उपस्थिति एक न एक रूप में पृथ्वी पर होगी, चाहे वह उनके ऐतिहासिक अवतार के रूप में हो या आध्यात्मिक रूप में। वर्तमान युग में भी हमें अपने भीतर और बाहर का समाज सुधारने के लिए धर्म, सत्य, और अच्छे कर्मों की ओर बढ़ना चाहिए, ताकि जब भगवान का अवतार हो, तो दुनिया को एक बेहतर जगह बना सके।

कोई टिप्पणी नहीं

समुद्र मंथन में विष, अमृत, माता लक्ष्मी आदि के साथ और क्या-क्या प्राप्त हुआ और वह किसे मिला?

  समुद्र मंथन हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और रहस्यमय घटनाक्रम है, जो महाभारत और पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है। यह घटना देवताओं...

Blogger द्वारा संचालित.